Since the beginning of civilization, gemstones have always been thought to possess metaphysical powers. All the main ancient cultures, Vedic, Egyptian, Mayan, and Greek, had used these colorful and shiny pebbles for ritualistic, sacramental and healing purposes. Gems seem to have a special power, a transcendental quality that go beyond their colorful mirror, the thought of far away lands and mysterious places.
There are hundreds of varieties in stones, greatly varying in quality and availability. Gemstones are usually used as remedial measure by wearing them. Each gem is associated with one of the planets. By having the gem in the proximity of the body, the body is affected by its qualities. Gems affect the subtle energy field, which emanates from every living thing, where our energetic and emotional habits, thought patterns, belief systems, and so on reside. The energy pattern of a gem directly affects one’s emotional and mental energies, and over a period of time this promotes long-lasting changes.
It is clearly stated in many passages of the different Vedic texts that “inward luster, transparency, illumination with rays, sparkle, free from impurities and good formation of the shape are the characteristics of good gems”
(Agni Purana).
“Gems are not good if they are sandy, cracked within, scratched, stained, if they are lusterless, rough, dull or mixed with mineral substances even though they may have all the characteristic features of their family” (Garuda Purana).
“Since a jewel (gem) endowed with good characteristics ensure good luck, prosperity and success to kings, and one with bad ones, disaster and misfortune, connoisseurs ought to examine their fortune depending on jewels (gems)” (Brhat Samhita).
“If anyone wears a gem of many flaws out of ignorance, then grief, anxiety, sickness, death, loss of wealth and other evils will torment him” (Garuda Purana)
रत्न सुझाव : अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम करने के लिए या जिस ग्रह का प्रभाव कम पड़ रहा हो उसमें वृद्धि करने के लिए उस ग्रह के रत्न को धारण करने का परामर्श ज्योतिषी देते हैं।
माणिक (Ruby) : कठोरता -9 अपेक्षित धनत्व-4.03 अपर्वतनाक -1.76 संयोजन – अल्मुनियम आॅक्साईड 97.37 प्रतिशत आयरन आॅक्साइड 1.09 प्रतिशत सिलिका-1.21 प्रतिशत
माणिक के उपयोग :- यह शरीर के त्रिदोषो को दूर कर स्वस्थ बनाया है और जातक को उर्जा , उत्साह तीव्र आकर्षण और प्रेम देता है। इसका प्रभाव हदय, रक्त संचालन और हडियों को शक्ति देता है और विलक्षण होता है । यह हदय ,रक्त संचालन और हडियों को शक्ति देता है और जातक को सहसी को सहसी व निडर बनाता है तथा उदासी, अवसाद व कामुकता को दूर करता है। यह दिल के रोग,पेट/कमर-दर्द, पेप्टिक अल्सर, आम कमजोरी, ठण्ड के रोग (अस्थमा ब्रोकाइटिस आदि) सिर में चोट और अग्नि की दुर्घटनाओं का कम/ नियंत्रित करता है। यह जातक को नाम ,प्रसिद्वि और सरकार से प्रतिष्ठा2 सहायता दिलाता है। त्रुटि वाला माणिक ज्योतिषीय उपचार में नही लिया जाता है।
मोती (Pearl) : कठोरता -3.5 अपेक्षित धनत्व- 2.7 संयोजन – केल्सियम कार्बोनेट/ यह चन्द्रमा से सम्बंधित सामुदिक/ जैविक रत्न है जो विभिन्न प्रकार के शैल-फिशों में विशेष कर मोती-ओएस्टर या कौंच -शैल में पाया जाता है।
मोती के उपयोग : इस रत्न का मन मस्तिक,मन की शान्ति और मानसिक रोगो को कम/ नियंत्रित करने में बहुत योग है।
लाल मूंगा (Red Coral) : कठोरता-3.25 आपेक्षिक धनत्व-2.7 संयोजन – कैलिशयम कार्बोनेट और हाइड्रो – कार्बोनेट । यह कोई खनिज नही है और चहाईट बहुत छोटे समुंदी जानवर) के ढाये से बना समुद्र की तहत पाया जाना है। इसलिए अपारदर्शी होता है यह मंगल से संबंधित गर्म रत्न है। यह कई रंगो से मिलता है लाल मूंगा अधिक प्रचलित है लेकिन सफेद और पीला मूंगा भी पाया जाता है।
मुंगा के उपयोग : नवरत्नो में यह सबसे सस्ता लेकिन प्रमुख रत्न है जो गर्म है और मंगल से संबंधित है । प्राचीन भारत और ग्रीस में इसका उपयोग आभूषण बनवाने में बहुत था। लाल-मुंगा मंगल के अचानक अशुद्व हमलों के सामने एक कवच/ सुरक्षात्मक यन्त्र है। यह जातक को दुर्घटनाओं रक्त का बहना और अस्त्र/ अग्नि की चोटो से बचाता है । यह धावो को शीघ्र ठीक करता है। स्त्रीयों में यह रक्त-संचालन , मासिक -धर्म -चक्र और गर्भ-पात आदि से बचाता है। बच्चे के लिए तो यह बहुत ही लाभकारी है। यह सूखा रोग अस्थमा , मधुमेह ,दिल के रोग टी0बी0 हाईड्रोसिल, धाव/ छाला के रोगो को कम कर नियंत्रित करने में सहायक है यह मलत्यागने वाली ग्रंथियों , गुदा पुरूष प्रजनन क्षमता / अंग रक्त की कमी, मांस-पेशियों में शक्ति हडीयेा -मेरो आदि में भी लाभप्रद है। रक्त को शुद्ध करके यह गर्भ-स्थिति और प्रसूति में स्त्रीयों के लिए बहुत लाभकारी है।
पन्ना : कठोरता – 7.5 आपेक्षित धनत्व-2.75 अपर्वतानांक (रफैक्टिव) इडेक्स)- 1.57 संयोजन – बेरिलियम एल्युमीनियम सिलिकेट। रासायनिक रूप से इसमें सिलिका- 67.85 प्रतिशत अलुमिनिया 18 प्रतिशत , बेरिलिया-12 प्रतिशत मगनेसयिा-1 प्रतिशत पानी-1.15 प्रतिशत और जैवकि पदार्थ 12 प्रतिशत । यह हरे रंग का पादर्शी और कीमती रत्न है। इसका हरा रंग संभवतया इ समे मौजूद कोमिक आॅक्साइउ के अशों के कारण है इस रत्न का रंग प्रायः गहरा किल्किन हरा से घास जैसे हरे के बीच होता है। शास्त्रो के अनुसार , शिखी के फूल के रंग वाला ब्राहाण के लिए कोमल घास जैसा क्षत्रिय के लिए , तोते जैसा वैश्य के लिए और मेर की पूंछ जैसा कृत्रिम प्रकाश में भी बनी रहती है इसमें कुछ पानी होता है। लेकिन रत्न में कोई दाग/ धम्बा नही होता । अधिकतर पन्ना में दरार/अशुद्वि के कारण इसकी कीमत बहुत घट जाती है।
पुखराज (Yellow Sapphire) : कठोरता-8.5 आपेक्षित धनत्व-4 अपर्वतानाक-1.57 सयोजन- अलुमियम आॅक्साई या कोरंडम। यह एक कीमती और लोकप्रिय रत्न है जो 12 कोणिया पिज्म-किस्टल में पाया जाता है इसकी कई प्रकार यद्यपि एक ही रसायानिक संयोजन की होकर भी अलग-अलग नाम और रंग वाली होती है, इनकी ज्योतिषीय गुण/ कारकत्व भी भिन्न होते है ये अपनी कठोरता विभिन्न रंग व प्रकार और पारदर्शिता के कारण बहुत आकर्षक होते है और आभुषणो में बहुत प्रयोग आते है। रंग उच्च गुणो वाले पुखराज थाईलेण्ड भारत (कश्मीर) श्री लंका ,ब्राजील , मेक्सिको, रोडेशिया, तरमानिया, दक्षिण वेल्स ओर कचीन-स्टैड (आॅस्ट्रेलिया) में पाया जाता है।
पुखराज के उपयोग : यह रत्न हदय, यकृत से संबंधित सभी कार्यो में बहुत लाभकारी और आवश्र्चजनक स्वास्थ्य लाभ देता है। यह हदय का अनियमित धड़कना, उच्च रक्त-चाप, ट्युमर, फंेफड़ो के रोग, पीलिया, गठिया,नपुंसकता/ बांझपन ,पेचिस , पेट की समस्याओ और तिल्ली आदि के बडने को कम/नियंत्रित करता हैं पुरूषों को यह बच्चा पैदा करने में और महिलाओ को विवाह, अच्छा पति, सुखी वैवाहिक जीवन और आसान प्रसुति देता है। यह मंगल के अशुभ प्रभाव(जैसे कुज दोष आदि) को दूर करता है । जातक को प्रसिद्व ,धनवान और व्यापार में सफलता देता है।
नीलम (Blue Sapphire) : इसकी रासायनिक संरचना/ कठोरता, आपेक्षित धनत्व और अपर्वतनाक (रेफ्रैक्टिव इंडेक्स) वही है जो पुखराज/पीला सैफायर का है फिर भी कुछ अत्यल्प अल्प मात्रा में पदार्थ और उद्गम के कारण जिसस इसकी वेव-लेंग्थ कुम होती है, इसका रंग ,गुण और कारकत्व बिल्कुल अलग होता है। यह रत्न बहुत ठंठा और शनि से संबंधित है तथा बहुत अधिक कीमति तथा गुणकारी है। इस की उच्च गुणवता वाला रत्न कश्मीर में मिलता है और वहां इसे मयुर-नीलम भी कहते है। इसका रण और इससे निकालने वाली किरणें नीली होती है।
नीलम का उपयोग : यह एक बहुत शक्तिशाली रत्न हैं यह एक ऐसा रत्न है कि इसके सहकारी दुष -परिणाम भी देखे गए है। इसलिए ज्योतिषियों और संतो को कहना है कि इसको धारण करने से पहलू इसका जातक विशेष पर असर जानने के लिए इसे कुछ सप्ताह के लिए जैब में या तकिये के नीचे रख कर इस का फल देख लेना चाहिए।
इस रत्न का जातक के स्वास्थ्य ,सम्मान , वित्तीय स्थिति और भाग्य पर स्पष्ट प्रभाव होता है। इसके प्रभाव में राजा से रंक य और रंक से राजा होते देखे गएं इसका हदय, मस्तिक, स्नायु प्रणाली पर विलक्षण नियंत्रण होता है। यह दीर्घ कालिन गंभीर रोग जैसे कैंसर, टी0बी0 , पक्षाघात, हदय-रोग, गठिया , मासल कमजोरी आदि रोगो को नियंत्रित करता है।
हीरा (Diamond): कठोरता -10 आपेक्षित धनत्व-3.5 अपर्वतनांका (रेफैक्टिव इंडेक्स)-2 421 प्राचीन काल से यह सबसे अधिक कीमत रत्न है लेकिन रासायनिक रूप से यह 100 प्रतिशत पवित्र कार्बन है। हीरे के अनेक प्रकार है ,लेकिन सबसे शुभ और आभुषणों मे प्रयोग में आने वाला बिना किसी रंग या हल्ले नीले रंग का होता है यह हल्ला होता है, पानी में से भी प्रकाष की किरणें विकर्ण करता है और इसकी चमक इन्द्रधनुष जैसी होती है।
हीरे का उपयोग : इसका प्रयोग आभुषणो के बहुत होता है। पहनने के लिए इसे सोना, चांदी या प्लेटिनम में जडा जा सकता है। यह शुक्र का रत्न है जो प्यार रोमांस ,सुन्दरता, विपरीत सेक्स को आकर्षित करता है। यह पहनने वाले को सुखी व आनंद-दायक वैवाहिक जीवन होता है और जातक में पवित्रता, निडरता, कलात्मक प्रवृति देता है, कोराहमिहिर के अनुसार एक त्रिकोणीय हीरा पुत्र चाहने वाली महिलाओं के लिए उपयोगी होता है । जिन जातको की कुंडली में शुक कमजोर/ पीड़ित हो उनको यह लाभ- प्रद है। यह यौन कमजोरी ,नपुसकता/बाझपन, यौन-रोग,मधु -मेह व गुर्दे के गभीर रोग, स्त्री प्रजनन -अंगोें के रोग और लुयूकेरिया आदि रोगों को नियंत्रित करने में सहायक होता है। आयुर्वेद में इसकी भस्म अनेक औषधि को तैयार करने में काम आती है। यह जहर को पहचानने में भी सहायक होता है क्योंकि कहते है कि यदि इसे किसी भी के निकट रखे तो इस पर पानी/ पसीने की बूंद जैसा उभर आता है।
गोमेद (Hessonite) : कठोरता-2.7 आपेक्षित धनत्व-4.5 अपर्वतानाक(रेफैक्वि इडेक्स)-1.80 संयोजन – जिरकोनियम सिलिकेट। यह जिरकाॅन परिवार का रत्न है और राहू जुडा है। यह ठंठा रत्न है जो परा-बैगनी काॅस्मिक काॅस्मिक किरणे िबिखेरता हैं। यह देखने में बहुत आकर्षक और इसके किस्टल चतुस-कोणीय प्रिज्म/पिरामिड के आकार में होते है । इस वतना रंग शहद या गौ-मुत्र जैसा होता है।
गोमेद के उपयोग : यह रत्न विद्यार्थियो के लिए बहुत लाभकारी है। यह वायु और कफ की अधिकता को नियंत्रित करता है और भूख व उर्जा बढ़ा कर स्वास्थ्य खुशिया और समृद्वि बढ़ाता है। यह जातक को दुर्घटनाओं , विषाक्त/नशीले प्रभावों , महामारी, सींगवाले/ रेंगने वाले जानवरो के खतरे से , घमंड, शरारत वाली गतिविधियों ,अपच, मानसिक और त्वचा के रोगों से बचाता या उनसे परेशानियों को कम करता है।
लहसुनिया (Cats Eye) : कठोरता -8.5 ,आपेक्षित धनत्व-3.75, अपर्वतानांक(रेफैक्वि इंडेक्स)-1.75 संयोजन – बेरीलियम का अलुमिनिया-एलुमिना-80 प्रतिशत ग्लुसिनिया-19 प्रतिशत । यह रत्न कईसोबेरिल परिवार का एक बहुत कठोर और गर्म रत्न है जो केतु से जुडा है और बहुत गर्म अव-लाल रंग की किरणे बिखेतरा है कुआर्तज यपरिवार में भरी कैट्स आॅई नाम का एक रत्न होता है। जो बहुत निम्न गुणो वाला होता है । इसमें कई प्रकार के रंग पाए जाते है। सही रत्न का रंग धुधला पीला और भूरापन लिए हरे के बीच होता है और कई प्रकार के रंग/चमक(चतोयात) दिखाता है। इस रत्न काचतायात असर इस के अन्दर अनगिनत अतिरिक्त सूक्ष्म नालियाॅ एक दूसरे के समानातर व्यवस्थित होती है। जो प्रकाश/ ताप को परावर्तित करती रहती है कबोचन कट (गोल या अंडाकार आकार में) के कारण इसमें हलके रंग की लाईन धूमति नजर आती है जब इसे धुमाया जाता है जो एक बिल्ली की आंख जैसा असर दिखती है। इस कारण इस रत्न को सूत्र मणि भी कहते है। यह रत्न वर्मा ब्राजील और श्रीलंका में अधिक होता है भारत में यह केरल (त्रिवेद्रम के निकट) पाया जाता है। बर्मा(मोगक) का रत्न सर्वोतम होता है, इस में पीलेपन की चमक और एक आंतरिक सफेद बैड होता है जिस रत्न में गुड्डा, दाग/ धब्बा , अभ्रक के कण, जाला या फीका हो वह अशुभ है और त्याग देना चाहिए।
लहसुनिया के उपयोग : यह रत्न त्रिदोष से उत्पन्न परेशानियों और रहस्यमयी रोगों (जो चिकित्सको को भ्रमित और समझ से परे लगते है।) मे बहुत सहायक है यह शरीर पर किसी भी वारयल ,उन्माद या जहर के असर को निरस्त/कम करता है। यह जातक को आकस्मिक मृत्यु और गुप्त शत्रु से बचाता है । यह पक्षाघात मिर्गी, जोड़ो का दर्द, गठिया, कैंसर, स्पोंडिलाइटस ,मूत्र रोग आदि को नियंत्रित /कम करने में बहुत सहायक है । प्रसव -पीडा के दौरान यदि इसे स्त्री के बालों बाँधा जाय तो प्रसव शीघ्र और बहुत कम कष्ट के हो जाता है और बच्चों को गले में पहनाने से खासी और स्वांश रोगों से आराम मिलता है।
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